
गिलास हूँ स्टील का,
कभी खाली, कभी पूरा भरा
कभी कम, कभी ज्यादा भरा.
जरुरत के मुताबिक,
भर लेते हैं वो भावनाएँ मुझमे,
फिर वक़्त आने पर
खाली भी कर देते हैं।
किसी को दिखाई नहीं देता,
मेरा खालीपन,
किसी को नहीं दिखता
मेरा पल पल बदलता जीवन.
एक जैसा ही लगता हूँ,
बाहर से हमेशा,
स्टील का हूँ ना!!!
काश कांच का होता,
उन्हें मेरे खालीपन का एहसास तो होता.....
-दीपक