यकीं है मुझे तुझपे,
जैसे हवा पे है।
वजूद मानता हूँ
पर शक्ल का अंदाज़ा नहीं।
अहसास जिस्म पे होता है
तेरे गुजरने का,
पर रुख कब, किधर होगा
गुमान नहीं होता।
-दीपक
2- Sep - 09
जैसे हवा पे है।
वजूद मानता हूँ
पर शक्ल का अंदाज़ा नहीं।
अहसास जिस्म पे होता है
तेरे गुजरने का,
पर रुख कब, किधर होगा
गुमान नहीं होता।
-दीपक
2- Sep - 09
Great Composition Deepak!!!
ReplyDeleteThanks Urwashi..
ReplyDeletegud one!!
ReplyDeletePratibha
Thanks Pratibha...
ReplyDeleteGudone..
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