उस शाम जब मैं
अंजान पथिक की तरह
अजनबी से रास्ते पर
अपनी खामोशियों के साथ
मंजिल से कुछ फासले पर,
बढा जा रहा था.
अचानक, दूर बहुत दूर
सूरज की आखिरी किरण के साथ,
एक कंपकंपाता साया नजर आया
अंजान पथिक की तरह
अजनबी से रास्ते पर
अपनी खामोशियों के साथ
मंजिल से कुछ फासले पर,
बढा जा रहा था.
अचानक, दूर बहुत दूर
सूरज की आखिरी किरण के साथ,
एक कंपकंपाता साया नजर आया
उस रात के पहले चरण के साथ.
मुझे लगा,
वोही मेरी मंजिल है,
जिसकी मुझे तलाश थी
येही वो साहिल है.
लेकिन जैसे – जैसे मैं
उस साए की तरफ बढ रहा था,
सूरज की आखिरी किरण के साथ
उस साए का कद भी घट रहा था.
और जब मैं वहां पहुंचा,
मेरी मंजिल मुझसे बहुत दूर जा चुकी थी.
और ढलती रात की अँधेरे की स्याही,
मेरे अस्तित्व पर छा चुकी थी.
चाँद मुस्कुरा रहा था
मेरी बेबसी पर
क्योंकि मैं एक अपाहिज हूँ.
और अपनी मंजिल को
दौड़ कर नहीं पकड़ सकता हूँ,
भगवान के अन्याय के कारण
समाज की सहानुभूति का
और दया का पात्र हूँ.
फिर एक बार मैं तन्हा खड़ा था
एक नए हौसले के साथ
अन्जान पथिक की तरह
अजनबी से रास्ते पर
अपनी खामोशियों के साथ
एक नयी मंजिल की तलाश में…
मुझे लगा,
वोही मेरी मंजिल है,
जिसकी मुझे तलाश थी
येही वो साहिल है.
लेकिन जैसे – जैसे मैं
उस साए की तरफ बढ रहा था,
सूरज की आखिरी किरण के साथ
उस साए का कद भी घट रहा था.
और जब मैं वहां पहुंचा,
मेरी मंजिल मुझसे बहुत दूर जा चुकी थी.
और ढलती रात की अँधेरे की स्याही,
मेरे अस्तित्व पर छा चुकी थी.
चाँद मुस्कुरा रहा था
मेरी बेबसी पर
क्योंकि मैं एक अपाहिज हूँ.
और अपनी मंजिल को
दौड़ कर नहीं पकड़ सकता हूँ,
भगवान के अन्याय के कारण
समाज की सहानुभूति का
और दया का पात्र हूँ.
फिर एक बार मैं तन्हा खड़ा था
एक नए हौसले के साथ
अन्जान पथिक की तरह
अजनबी से रास्ते पर
अपनी खामोशियों के साथ
एक नयी मंजिल की तलाश में…
- दीपक
26 - Oct - 1999
nice dude
ReplyDeleteA true part of Life
ReplyDeleteNice...
awesome...
ReplyDeleteths is the life actually...
achha hai...achha hai...
ReplyDelete=> Ghanshyam, Amit - Thanks bhai log...spread love for these ppl.
ReplyDelete=> Vandana - Thanks, u can see ppl lik this around u everytime.
ReplyDelete=> Syu - Shukriya, Shukriya..
ReplyDeletenice yaar
ReplyDelete=> Thanks Jagdish
ReplyDeletenice poem..n this should be the sprit of our life..life should be move on nehow....
ReplyDeletekoi kah de kaichiyo se apne had me rahe...
ReplyDeletehum paro se nahi hauslo se udan bharte hai....
=> Reena - Thank you 4 getting the message.. :)
ReplyDelete=> Ajay - Thanks 4 nice support..
बहुत ही संवेदनशील रचना। आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा दीपक जी। बेहतरीन
ReplyDeleteOne request deepak ji. Pls remove the option of prooving dat someone is not robot.
ReplyDeleteIt will help us
Thanks
वेरिफिकेशन हटा दिए हैं, ब्लॉग पे आने के लिए धन्यवाद.
Deleteकुछ बचपन की यादें समेट रहे है, देखिएगा..
deepakssblog.blogspot.com