Monday, May 3, 2010

रिश्ता


क्या नाम दूँ मैं तुम्हें,
दोस्त, शायद नहीं।
क्योंकि दोस्त तो,
धीरे धीरे बनते हैं।
लेकिन तुम तो,
एक इत्तेफाक के तहत,
आंधी की तरह
मेरी जिंदगी में आई
और मेरे अस्तित्व को
घटाओं की तरह ढक लिया...

क्या नाम दूँ मैं तुम्हें,
प्रेमिका, शायद नहीं
क्योंकि वो
तुम हो नही सकती।

फिर क्या रिश्ता है
मेरा - तुम्हारा
क्या नाम दूँ मैं तुम्हें।

मेरे ख्याल से
तुम एक कड़ी हो,
दोस्त और प्रेमिका के बीच की।
और हमारा रिश्ता है
विश्वास का।
एक दूसरे के लिए
कुछ कर गुजरने का।
एक दूसरे को
समझने का, सँभालने का।
मुझे लगता है
ये रिश्ता
बेनाम ही रह जाएगा।
क्योंकि समझ नही पा रहा हूँ
क्या नाम दूँ मैं तुम्हें?


- दीपक
28 - Sep - 1999