Sunday, July 31, 2011

मेरी दीवाली


प्रदीप्त दीपक में ईधन रूपी तेल की
कुछ आखिरी बूंदें,
चीत्कार कर रही थी,
कोई तो आकर उन्हें बुझने से रोके.

लाल पीली हिलती डुलती सी लौ
कमजोर पड़ती जारही थी
जिसका था इंतज़ार
उसके आने की आस
दम तोडती जारही थी.

मेरी सूनी आंखे टिकी हुई थी
उस टिमटिमाती लौ पे
जो अपने जन्म के समय तेज़ थी,
पूरी दुनिया को समेटने की ताकत रखती थी.
पर इस समय तक
उसका सामर्थ्य इतना क्षीण हो चुका है
के मेरे प्रियतम का इंतज़ार भी नहीं कर सकती.

किन्तु मुझे तो
उसकी प्रतीक्षा करनी है,
और मैं करूँगा भी
क्यों की उसने वादा किया है
दीपक की इस लौ में आने का
मैं अकेला नहीं हूँ
वो मेरे साथ है
ये एहसास दिलाने का .

वो आना भी चाहती है मेरे पास
लेकिन, मुझसे अलग भी उसकी एक दुनिया है
जहाँ उसके लिए अविरल प्रेम बहता है
दोस्त हैं, नातेदार हैं, परिवार है
सबके लिए इसका भी तो कुछ कर्तव्य बनता है..

मुझे भय सिर्फ इतना है
कहीं वो अपनी दुनिया में जा कर
मुझसे किया हुआ वादा भूल न जाए.
मैं जनता हूँ ये मेरा भ्रम है
शायद उसके आने में देरी के कारण...

लेकिन मुझे विश्वास भी है
की वो अवश्य आयेगी
और, मेरी सारी प्रतीक्षा की थकान मिट जाएगी.
बस, मुझे इस लौ को
बुझने नहीं देना है
इसी लौ में वो आयेगी
एक बिम्ब के रूप में ...
और जब वो आयेगी
तभी तो मेरी दिवाली "मंगलमय" होगी....


- दीपक
१ नवम्बर २००५ (दीवाली)